भील जनजाति: निवास क्षेत्र, अर्थव्यवस्था, समाज और संस्कृति | Bhil Tribe In Hindi

मानव भूगोल के इस लेख में भारत की एक प्रमुख जनजाति 'Bheel Janjati' (Bhil Tribe in Hindi) के बारे में जानकारी दी गई है। इस लेख में Bheel Janjati (Bhil Tribe in Hindi) के निवास, अर्थव्यवस्था, भोजन, समाज व संस्कृति आदि पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की गई है। 


Bhil Tribe In Hindi


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Bheel Janjati - Bhil Tribe in Hindi

कुछ मानवशास्त्रियों का मत है की 'भील' शब्द का संबंध तमिल भाषा के "भिलवारी" शब्द से हैं, जिसका अर्थ 'धनुर्धारी' होता है। चूँकि ये लोग धनुर्धारी है अतः ये केवल कोरी कल्पना हैं। ये वास्तव में भारत के मूल निवासी है।

कुछ मानवशास्त्रियों का मत यह भी है कि भील जनजाति भारत की प्राक द्राविड़ जातियों में से है। किसी-किसी का अनुमान है कि इनके पूर्वज भूमध्यसागरीय जातियों में से थे और जब जलवायु परिवर्तन के कारण उनके मूल प्रदेश की जलवायु नष्ट होने लगी तब वे प्रवास करके भारत आ गए और कैस्पियन संस्कृति के अंतिम रूप को उन्होंने विंध्य प्रदेश में फैलाया। कुछ अन्य लोग इन्हें नीग्रोयड और नीग्रेटो जातियों का भी मानते हैं। 


Bheel Janjati का निवास क्षेत्र - Bhil Tribe in Hindi

भील जनजाति के निवास क्षेत्र दक्षिणी राजस्थान, उत्तर-पश्चिमी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में खानदेश और गुजरात है। ये मुख्यतः मालवा के पठारी भाग में रहते हैं। अरावली, विंध्याचल एवं सतपुड़ा पर्वत तथा रेवटकांटा के पठार इनके सबसे बड़े निवास स्थान है। 


राज्यों की दृष्टि से ये निम्नलिखित क्षेत्रों में निवास करते हैं -
मध्यप्रदेश के -
  • धार 
  • झाबुआ 
  • रतलाम
  • निमाड़ 

राजस्थान के 
  • उदयपुर 
  • राजसमंद 
  • डूंगरपुर 
  • बांसवाड़ा 
  • प्रतापगढ़

गुजरात के  
  • पंचमहल 
  • बनासकांठा 
  • सावरकांठा 
  • बड़ौदा 

आदि जिलों में भील केंद्रित पाए जाते हैं। बिखरे हुए रूप में आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में भी भील जनजाति पाई जाती है। 

इनके अधिवास के पठारी क्षेत्रों में भूमि उबड़-खाबड़ और कटी-फटी है। कहीं ऊंचे पर्वत है तो कहीं निम्न घाटियां तथा कुछ स्थानों पर घने वन भी है किंतु अधिकांश खुले वन और कटीली झाड़ियां वाले भूभाग ही है। इनके अधिवास क्षेत्र में औसत ग्रीष्मकालीन तापमान 33℃ तथा शीतकालीन तापमान 18℃ रहता है, जो की प्रायः असामान्य नहीं है। वर्षा का औसत 50 cm से 150 cm तक है। 


भील जनजाति की अर्थव्यवस्था - Bhil Tribe Economy in Hindi

पूर्वकाल में भी लोग अधिकतर पशुचारण, वनों की उपज और आखेट पर निर्भर करते थे परंतु अब ये लोग अधिकतर स्थायी खेती करते हैं। कुछ लोग भेड़, बकरियां भी पाते हैं। मुर्गी पालन का प्रचलन भी इनमें बढ़ा है। जो लोग विंध्याचल की पहाड़ियों और वन क्षेत्रों में रहते हैं। वे मुख्यतः भेड़-बकरी पालन और जंगल से छाल, गोंद, कन्द-मूल आदि एकत्रित करने का कार्य करते हैं और समीप के बाजारों में बेचते हैं। 


राजस्थान के भीलों की अर्थव्यवस्था में पर्याप्त सुधार हुआ है। अब ये लोग मक्का, चावल आदि की कृषि करते हैं। गाय, भैंस, बकरियां, भेड़ आदि पालते हैं, जिससे दूध, मांस, खाल, ऊन और चमड़ा आदि का व्यवसाय करते हैं। बहुत से लोग नगरों में जाकर नौकरी और मजदूरी करने लगे हैं।


भील लोगों के भोजन और आवास

भील लोग प्रायः मोटे अनाज जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा तथा कोंदो का खाने में प्रयोग करते हैं। वनों से पर्याप्त शिकार को पकाकर खाना इन्हें प्रिय होता है। सामाजिक त्योहारों एवं उत्सवों पर मांस के साथ शराब भी पी जाती है। जंगलों से एकत्रित किया गया शहद भी भोजन का एक मुख्य भाग है। 


भीलों के आवास पत्थरों, घास-फूस तथा जंगली लकड़ियों से निर्मित होते हैं। भीलों की झोपड़ीयाँ प्रायः पहाड़ी ढालों पर दूर-दूर बिखरे हुए प्रतिरूप में मिलती है। मकान की दीवारें पत्थरों की तथा छतें, छप्परों व खपरैल की होती है। पशुओं के लिए मकान के एक ओर छप्पर डाल दिया जाता है। भीलों के गांव मीठे जल की उपलब्धता वाले क्षेत्र के निकट स्थित होते हैं। प्रायः प्रत्येक भील परिवार के पास एक छोटी बैलगाड़ी होती है। भीलों के घर को 'क्रू' कहा जाता है। 



Bheel Janjati Ki Veshbhusha

भीलों के निवास क्षेत्र की जलवायु उपोष्ण है अतः सूती वस्त्र पहने जाते हैं। ऊनी वस्त्र पहनने की आवश्यकता केवल शीतकाल में ही होती है। तब ये लोग कंबल ओढ़कर शीत से रक्षा करते हैं। पुरुष लोग ऊँचा कुर्ता और धोती पहनते हैं। सिर पर साफा बांधते हैं। स्त्रियां सूती दामन (लहंगा) और कुर्ता अथवा आंगी (बोडी) पहनती है। सिर पर सूती ओढ़नी होती। स्त्रियों को आभूषण का बढ़ा शौक होता है। वे हाथों में हाथीदांत के चूड़े, चांदी के कड़े आदि पहनती है। गले में चांदी की हंसली, भाला आदि माथे पर चांदी का बोरला तथा जंजीर पैरों में चांदी के कड़े तथा हाथों और पैरों की उंगलियों में चांदी के छल्ले होते हैं। कई पुरुष भी हाथों में कड़े पहनना पसंद करते हैं। भील स्त्री-पुरुष को गोदने-गुदाने का बड़ा शौक होता है। अधिकतर गोदने मुंह और हाथ पर गुदाये जाते हैं। 



भील जनजाति का समाज और संस्कृति - Bhil Tribe Society and Culture in Hindi

भील एक स्थायी आवास वाली जनजाति है। इनके गांव होते हैं, जहां औसतन 10 से 100 परिवार तक सामूहिक रूप से रहते हैं। इनके गावों में घर बिखरे हुए एवं अव्यवस्थित रूप में होते हैं। भील परिवार अपने खेत में ही घर बना लेते हैं। इनकी झोपड़ियों में धनुष-बाण, कपड़े, बर्तन आदि रखे जाते हैं। इनके धनुष-बाण बहुत नुकीले होते हैं। इन बाणों को कभी-कभी ये विषैला बनाकर उनको और अधिक घातक बना देते है। 


ये लोग परिश्रमी, साहसी और ईमानदार होते हैं। चोरी करना धार्मिक पाप समझते हैं। विवाह बड़ी अवस्था में होता है। विवाह से पूर्व लड़के-लड़कीयों का पारस्परिक प्रेम वर्जित होता है। जब लड़का 20 वर्ष और लड़की 16 वर्ष के लगभग प्राप्त कर ले लेते है, तब विवाह होता है। लड़के का पिता लड़की के पिता को दान देता है। इस धन से लड़की का पिता प्रतिभोज देता है। इस वधू-मूल्य को देने से बचने के लिए इन लोगों में कन्या अपहरण प्रथा है। शूरता, साहस का कार्य एवं दिखलाने वाले युवकों को अपनी पसंद की युवती छाँट लेने का अधिकार होता है, जिसे 'गोल गधेड़ा' प्रथा कहते हैं। 


भीलों में बहुत-सी देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। ये अंधविश्वासी भी होते हैं। भूत-प्रेतों में अधिक विश्वास रखते हैं। ये मृतक का दाह-संस्कार करते हैं। 


इन लोगों में मदिरापान का प्रचलन है। जंगलों से प्राप्त हुई भांग आदि की पत्तियों को सड़ा कर घरेलू मदिरा बनाई जाती है। जिसको ये बड़े शौक से पीते हैं। विवाहों तथा उत्सवों में इसका अधिक उपयोग किया जाता है। 


फाइरे-फाइरे भीलों को रणघोष है। इनके छोटे गांव को पाल व बड़े गांव को फाल कहते हैं। पाल का मुखिया गमेती अर्थात ग्राम स्वामी कहलाता है। भील जनजाति में ढोल बजाकर आपातकालीन समय में सभी को एकत्रित कर लिया जाता है। 


भील लोग परंपरा से घुम्मकड़ स्वभाव के होते हैं लेकिन अब ये अनेक भागों में कृषि करने लगे हैं। पहाड़ी ढालों के वनों को जलाकर प्राप्त की गई भूमि में वर्षा काल में अनाज व सब्जियां बोई जाती है, इस प्रकार की खेती को 'चिमाता' कहते हैं। 


स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने भीलों को अनुसूचित जनजाति (scheduled tribes) का दर्जा देकर उनके विकास के लिए अनेक प्रयास किए हैं। भारत सरकार की ओर से इनके निवास क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार के लिए स्कूल खोले जा रहें है। 


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